दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ |
समता का भाव धरकर, सबसे क्षमा कराऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
त्यागूँ आहार-पानी, औषध-विचार अवसर |
टूटें नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
जागें नहीं कषायें, नहिं वेदना सतावें |
तुमसे ही लौ लगी हो, दुर्या||न को भगाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
आतम-स्वरूप अथवा, आराधना विचारन |
अरहंत सिद्ध साधु, रटना यही लगाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
धरमात्मा निकट हों, चरचा धरम सुनावें |
वह सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
जीने की हो न वाँछा, मरने की हो न इच्छा |
परिवार-मित्रजन से, मैं राग को हटाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
भोगे जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमिरन |
मैं राज्य-संपदा या, पद-इन्द्र का न चाहूँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
रत्न-त्रयों का पालन, हो अन्त में समाधी |
शिवराज प्रार्थना है, जीवन सफल बनाऊँ ||
दिन-रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ |
देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ||
कविश्री शिवराज