म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भार्इ जी ||
सावन सुदि दशमी तिथि आर्इ, प्रगटे त्रिभुवन रार्इ जी ||

अलवर प्रांत में नगर तिजारा, दरसे देहरे मांही जी ||
सीता सती ने तुमको ध्याया, अग्नि में कमल रचाया जी ||

मैना सती ने तुमको ध्याया, पति का कुष्ट मिटाया जी ||
जिनमें भूत प्रेत नित आते, उनका साथ छुड़ाया जी ||

सोमा सती ने तुमको ध्याया, नाग का हार बनाया जी ||
मानतुंग मुनि तुमको ध्याया, तालों को तोड़ भगाया जी ||

जो भी दु:खिया दर पर आया, उसका कष्ट मिटाया जी ||
अंजन चोर ने तुमको ध्याया, शस्त्रों से अधर उठाया जी ||

सेठ सुदर्शन तुमको ध्याया, सूली का सिंहासन बनाया जी ||
समवसरण में जो कोर्इ आया, उसको पार लगाया जी ||

रत्न-जड़ित सिंहासन सोहे, ता में अधर विराजे जी ||
तीन छत्र शीष पर सोहें, चौंसठ चंवर ढुरावें जी ||

ठाड़ो सेवक अर्ज करै छै, जनम मरण मिटाओ जी ||
भक्त तुम्हारे तुमको ध्यावैं, बेड़ा पार लगाओ जी ||

नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पुजै भजै नाय शीशं ।
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमे हाथ जोड़ि, नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं ॥१॥

गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुडावे, महा आगतै नागतै तू बचावे ।
महावीरतै युद्ध में तू जितावे, महा रोगतै बंधतै तू छुडावे ॥२॥

दुखी दुखहर्ता सुखी सुखकर्ता, सदा सेवको को महा नन्द भर्ता ।
हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं, विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं ॥३॥

दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने, अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने ।
महासंकटों से निकारे विधाता, सबे सम्पदा सर्व को देहि दाता ॥४॥

महाचोर को वज्र को भय निवारे, महपौन को पुंजतै तू उबारे ।
महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा, महालोभ शैलेश को वज्र मारा ॥५॥

महामोह अंधेर को ज्ञान भानं, महा कर्म कांतार को धौ प्रधानं ।
किये नाग नागिन अधो लोक स्वामी, हरयो मान दैत्य को हो अकामी ॥६॥

तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनं, तुही दिव्य चिंतामणि नाग एनं ।
पशु नर्क के दुःखतै तू छुडावे, महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावे ॥७॥

करे लोह को हेम पाषण नामी, रटे नाम सो क्यों ना हो मोक्षगामी ।
करै सेव ताकी करै देव सेवा, सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा ॥८॥

जपै जाप ताको नहीं पाप लागे, धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे ।
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे, तुम्हारी कृपातै सरै काज मेरे ॥९॥

गणधर इंद्र न कर सके, तुम विनती भगवान ।
द्यानत प्रीति निहार के, कीजे आप सामान ॥१०॥

ओं जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा !
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा |

पौष वदी ग्यारस काशी में आनंद अतिभारी,
अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी | ओं जय..

श्यामवरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं,
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं | ओं जय..

जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया,
हरा कमठ का मान, ज्ञान का भानु प्रकाश किया | ओं जय..

मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूँ किसकी,
तुम बिन दाता और न कोई, शरण गहूँ जिसकी | ओं जय..

तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अंतर्यामी,
स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो, त्रिभुवन के स्वामी | ओं जय..

दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे,
दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे | ओं जय..

विपद-विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता,
सेवक द्वै-कर जोड़ प्रभु के, चरणों चित लाता | ओं जय..


जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभुदेवा ।
तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी
पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा
चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये
रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

बाल्यकाल में ही प्रभु तुमने दीक्षा ली प्यारी
भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ
खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे
मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

हम प्रभु दास तिहारे, निश दिन गुण गावें
पाप तिमिर को दूर करो, प्रभु सुख शांति लावें
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…